वो शाम ढल रही थी
युद्ध मे भारी रूप से घायल भारतीय सैनीक का हाल बताती कुछ पंक्तियाँ….. वो शाम ढल रही थी, काली रात चढ रही थी । अंधेरा नज़रो के आगे था, पर वो आंख किसी से ना डर रही थी, वो शाम ढल रही थी, वो शाम ढल रही थी। वो लड रहा था उसके लिए, जो जी रहा था उसकी आस मे, वो लड रहा था उसके लिए जो जी रहा था उसकी सांस पे। वो धड़कन अभी धड़क रही थी, वो सांसे अभी भी चल रही थी, वो लड रहा था अंधकार से , क्योंकि वो शाम ढल रही थी, वो शाम ढल रही थी। वो शाम कभी तो ढल जएगी, वो काली घटा तो चढ जएगी, पर,,,, पर जुड़ेगा उसका हौसला, हिम्मत गले प ड़ जाएगी, और कह देगा अब वो रात से, यह शाम कभी ना ढल पाएगी, यह शाम कभी ना ढल पाएगी।